
अनूप पासवान, कोरबा: छत्तीसगढ़ का औद्योगिक शिखर कोरबा 25 मई 2025 को अपने 27वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है. लेकिन इस औपचारिक स्थापना से बहुत पहले, कोरबा के नाम और पहचान की नींव जंगलों, पहाड़ों और वहां रहने वाले पहाड़ी कोरवा जनजातियों ने रखी थी. आज जो कोरबा देश को रोशन करता है, वहां कभी आदिवासी जीवन की शांति गूंजा करती थी, हरियाली ही उसकी दौलत थी.
जहाँ जंगल बोला करते थे, वहाँ आज बिजली बहती हैसाल 1941 में जब पहली बार कोरबा की धरती में कोयला खोजा गया, तब किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यही ‘काला हीरा’ एक दिन भारत की ऊर्जा का स्त्रोत बनेगा. कोयले की खोज के साथ औद्योगिक विकास की चिंगारी जली और धीरे-धीरे यहां की धरती को बिजली पैदा करने वाली मशीनों ने छू लिया.
कोरवा जनजाति: जिनके नाम से बसा कोरबापुरातत्व मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्रिय बताते हैं कि ‘कोरबा’ नाम संरक्षित जनजाति ‘कोरवा’ के नाम पर पड़ा. पहाड़ी कोरवा जनजाति यहां की आत्मा हैं. इनका जीवन जंगल से जुड़ा रहा है, और यही संबंध आज भी वनांचल क्षेत्र में देखने को मिलता है जहां आधुनिकता की चमक अभी भी दूर है.
ऊर्जा का केंद्र बनने का लंबा और कठिन सफरवरिष्ठ पत्रकार गेंद लाल शुक्ल बताते हैं कि कोरबा का औद्योगिक उदय तब शुरू हुआ जब मध्य प्रदेश विद्युत मंडल ने पहला पावर प्लांट स्थापित किया. इसके बाद एनटीपीसी और बालको जैसे दिग्गज संस्थानों ने कोरबा को ऊर्जा हब बना दिया. आज यहां से पूरे देश को बिजली की सप्लाई होती है और इसी कारण इसे ‘ऊर्जाधानी’ कहा जाता है.
मिनी भारत: जहाँ देश के हर कोने के लोग बस गएराम सिंह अग्रवाल, कोरबा चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष, कहते हैं कि “यहां कोई बाहरी नहीं है, जो आया, यहीं का हो गया.” औद्योगिकरण के चलते रोजगार के अवसर बढ़े और देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग कोरबा पहुंचे. आज यहां बिहार, झारखंड, ओडिशा, यूपी, बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के लोग एक साथ रहते हैं इसलिए इसे ‘मिनी भारत’ भी कहा जाता है.
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