
छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा इन दिनों ‘बोरे-बासी’ के इर्द-गिर्द गरमाई हुई है. यह मुद्दा, जो पहले सांस्कृतिक गौरव और ‘छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान’ का प्रतीक था, अब पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के केंद्र में आ गया है. भाजपा नेता राधिका खेड़ा द्वारा लगाए गए आरोपों ने न केवल राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक हथियार के रूप में भी उभर रहा है. यह विश्लेषण इस विवाद की राजनीतिक परतों, इसके निहितार्थों और भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डालता है.
‘बोरे-बासी’ केवल एक साधारण भोजन नहीं है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति, मेहनतकश किसानों और श्रमिकों के जीवन का एक अभिन्न अंग है. गर्मी में शरीर को शीतलता प्रदान करने वाला यह पौष्टिक आहार सदियों से इस माटी का हिस्सा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी सरकार के दौरान ‘छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान’ को अपनी राजनीति का केंद्र बनाया और इसी क्रम में, 1 मई (मजदूर दिवस) को ‘बोरे-बासी तिहार’ के रूप में मनाना शुरू किया. यह कदम राजनीतिक रूप से अत्यंत चतुर था. बघेल ने इसे केवल एक खाद्य पदार्थ के रूप में पेश नहीं किया, बल्कि इसे मजदूरों, किसानों और छत्तीसगढ़ की पहचान से जोड़कर एक व्यापक राजनीतिक संदेश दिया.
‘बोरे-बासी तिहार’ को कांग्रेस सरकार के कथित भ्रष्टाचार का नया प्रतीकसत्ता परिवर्तन के बाद, भाजपा ने अब इसी ‘बोरे-बासी तिहार’ को कांग्रेस सरकार के कथित भ्रष्टाचार का नया प्रतीक बना दिया है. राधिका खेड़ा के आरोप तीखे और गंभीर हैं, जो सीधे तौर पर वित्तीय अनियमितताओं की ओर इशारा करते हैं. उन्होंने संस्कृति की आड़ में ‘लूट’ का आरोप लगाया है. भाजपा का आरोप है कि भूपेश बघेल के लिए ‘बोरे-बासी’ संस्कृति संरक्षण का माध्यम नहीं, बल्कि “लूट का साधन” बन गया था. यह आरोप भावनात्मक है और सीधे तौर पर कांग्रेस की ‘छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान’ की राजनीति पर हमला करता है, यह दर्शाने की कोशिश करता है कि कांग्रेस ने संस्कृति का ढोंग कर जनता के पैसे का दुरुपयोग किया.
सबसे बड़ा वित्तीय आरोप, अजीबोगरीब खर्चों का ब्यौराकरोड़ों का घोटाला और 5 घंटे के आयोजन में 8 करोड़ रुपये से अधिक “उड़ाने” का आरोप सबसे बड़ा वित्तीय आरोप है. यदि यह आंकड़ा प्रमाणित होता है, तो यह एक बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता और जनता के पैसे की बर्बादी का संकेत होगा. यह आंकड़ा आम जनता के लिए भी आसानी से समझने वाला है और उनमें आक्रोश पैदा करने में सक्षम है. इसमें अजीबोगरीब खर्चों का ब्यौरा दिया गया है. इसमें 1500 रुपये की वीआईपी थाली और 8 रुपये की पानी की बोतल को 18 रुपये में खरीदना जैसे उदाहरण छोटे स्तर पर भी कुप्रबंधन, अत्यधिक खर्च और संभावित भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते हैं. ये आरोप दर्शाता है कि छोटी-छोटी मदों में भी अनियमितता बरती गई.
भाजपा का आक्रामक रुख और रणनीतिक लाभभाजपा इन आरोपों को पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के ‘भ्रष्टाचार’ का एक और ठोस उदाहरण मानकर जोरदार तरीके से उठा रही है. ‘छत्तीसगढ़ महतारी के साथ धोखा’ जैसे भावनात्मक शब्दों का प्रयोग कर वे जनता के बीच कांग्रेस की छवि धूमिल करना चाहते हैं. भाजपा की रणनीति स्पष्ट है: कांग्रेस सरकार के दौरान हुए कथित घोटालों (चाहे वह महादेव ऐप घोटाला हो, कोयला घोटाला हो या अब बोरे-बासी विवाद) को लगातार उजागर कर जनता का विश्वास हासिल करना और यह संदेश देना कि वे एक ‘भ्रष्टाचार मुक्त’ सरकार दे रहे हैं. यह एक चुनावी रणनीति के तौर पर भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे जनता का ध्यान वर्तमान सरकार की उपलब्धियों से इतर पूर्ववर्ती सरकार की कथित कमियों पर केंद्रित किया जा सकता है.
कांग्रेस की बचाव की स्थिति और विश्वसनीयता पर सवालपूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस पार्टी अभी तक इन आरोपों पर कोई विस्तृत या संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं दे पाए हैं. यह उनके लिए एक मुश्किल स्थिति है, क्योंकि ‘बोरे-बासी’ उनकी ‘छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान’ की राजनीति का एक प्रमुख स्तंभ था. यदि ये आरोप प्रमाणित होते हैं, तो यह कांग्रेस की विश्वसनीयता, नैतिक आधार और ‘माटी पुत्र’ वाली छवि पर गंभीर सवाल उठाएगा. उन्हें यह साबित करना होगा कि आयोजन में कोई अनियमितता नहीं हुई या फिर इसकी गहन और निष्पक्ष जांच की मांग करनी होगी. इस मामले में चुप्पी या कमजोर बचाव कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से महंगा साबित हो सकता है.
जनता में संदेश और भावनात्मक जुड़ावआम जनता, विशेषकर ग्रामीण और गरीब वर्ग के लिए, बोरे-बासी सिर्फ एक भोजन नहीं, बल्कि उनकी पहचान और एक जीवनशैली का प्रतीक है. इस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने से उनमें आक्रोश और निराशा पैदा हो सकती है. यदि यह सिद्ध होता है कि संस्कृति के नाम पर उनके पैसे का दुरुपयोग किया गया है, तो यह भावनात्मक रूप से भाजपा के पक्ष में जा सकता है. ‘छत्तीसगढ़िया’ अस्मिता के नाम पर मिली जीत को कांग्रेस के लिए बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है यदि इन आरोपों को मजबूती से जनता के बीच रखा जाए.