
Last Updated:April 30, 2025, 18:54 ISTBastar news in hindi: डॉ. शर्मा ने बताया कि वर्ष 2015 से 2018 के बीच नक्सली संगठन 18 से 25 वर्ष के युवाओं की भर्ती करते थे. अब यह उम्र घटाकर 13 साल तक की जा चुकी है. ऐसे समय में बच्चों की सोच और….X
डॉ वर्णिका शर्मारायपुर: छत्तीसगढ़ की डॉ. वर्णिका शर्मा सैन्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में देश के लिए एक अनमोल योगदान दे रही हैं. महासमुंद में पली-बढ़ी डॉ. शर्मा न सिर्फ एक प्रबुद्ध मनोवैज्ञानिक हैं, बल्कि उन्होंने बस्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में युवाओं को मानसिक मजबूती देने का काम भी किया है. उनका मानना है कि सैन्य मनोविज्ञान एक अथाह सागर है यह केवल काउंसलिंग तक सीमित नहीं, बल्कि इसमें मनोवैज्ञानिक युद्ध की रणनीतियां और मानवीय प्रबंधन तकनीकें भी शामिल हैं.बस्तर की जमीनी हकीकत से जुड़ा सैन्य मनोविज्ञानडॉ. शर्मा लोकल 18 के जरिए बताती हैं कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सल हिंसा से प्रभावित सुरक्षा बलों और नागरिकों के मानसिक व्यवहार का अध्ययन सैन्य मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण पहलू है. नक्सली हमलों में शहीद हुए जवानों के परिवारों और हिंसा से पीड़ित आम नागरिकों के बिहेवियर डायनेमिक्स को समझना, उनकी मानसिक स्थिति का विश्लेषण कर उसका हल देना इस क्षेत्र का दूसरा प्रमुख पड़ाव है.
मानव प्रबंधन तकनीक और निदान की ओर कदममानव प्रबंधन के तीसरे चरण में उन्होंने यह विश्लेषण किया कि किन तरीकों से इन प्रभावित इलाकों में मनोवैज्ञानिक निदान की प्रक्रिया को सशक्त किया जा सकता है. उनके अनुसार, छत्तीसगढ़ के युवाओं में अपार ऊर्जा और बस्तर के लोगों में अद्भुत नैसर्गिक प्रतिभा है. इसे सिर्फ सही दिशा देने की जरूरत है.
डॉ. शर्मा ने बताया कि वर्ष 2015 से 2018 के बीच नक्सली संगठन 18 से 25 वर्ष के युवाओं की भर्ती करते थे. अब यह उम्र घटाकर 13 साल तक की जा चुकी है. ऐसे समय में बच्चों की सोच और मनोदशा में तेज़ी से बदलाव आता है और वे दिशाहीन हो जाते हैं. इसी कारण उन्होंने सारगुड़ा जैसे संवेदनशील इलाकों में ‘कारण अनुरूप निदान’ टैगलाइन के साथ विशेष अभियान चलाया.
इस अभियान के तहत दंतेवाड़ा, बीजापुर और आसपास के जिलों के युवाओं को एकत्र कर मार्केट साइकोलॉजी का प्रशिक्षण दिया गया. डॉ. शर्मा कहती हैं कि इन युवाओं में अद्भुत प्रतिभा है, लेकिन थोड़ी सी चूक कम्युनिकेशन में हो रही थी. वे डेवलपमेंट के योग्य थे, लेकिन कोई तीसरा व्यक्ति आकर उसका लाभ ले जाता था. इसी कमी को दूर करने के लिए उन्होंने कार्यशालाएं आयोजित की.
बस्तर के बच्चों के मानसिक कौशल पर कामउन्होंने मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर यह भी जानने की कोशिश की कि बस्तर के बच्चों की रुचि किस दिशा में है. उन्होंने उनके मानसिक झुकाव का ग्राफ तैयार किया और फिर उसी हिसाब से समाधान प्रस्तुत किया. डॉ. शर्मा का यह दृष्टिकोण न केवल वैज्ञानिक था, बल्कि व्यावहारिक भी था.एक साधारण पृष्ठभूमि से असाधारण यात्रा तकअपने पारिवारिक जीवन के बारे में बताते हुए डॉ. शर्मा कहती हैं कि वे महासमुंद के एक सामान्य परिवार से आती हैं, जहां अध्ययन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी. बचपन में उनके पिता ने उन्हें अखबार के संपादकीय कॉलम पढ़ने की आदत डाली थी. वे खुद को एक “धीमी गति की लड़की” बताती हैं, जिसे लेकर लोग कहते थे कि यह कुछ नहीं कर सकती. आज वही धीमा शोध समाज के कल्याण का माध्यम बन चुका है.
उनका जीवन मंत्र है कि कभी अपनी कमजोरी को कमजोरी न समझो, बल्कि उसे गुणों का आवरण दो, अगर उद्देश्य जनकल्याण का है, तो कोई भी कमजोरी कमजोरी नहीं रह जाती है. डॉ. वर्णिका शर्मा आज देश के उन चुनिंदा सैन्य मनोवैज्ञानिकों में से एक हैं जो न केवल थ्योरी बल्कि फील्ड में जाकर वास्तविक बदलाव ला रही हैं.
Location :Raipur,ChhattisgarhFirst Published :April 30, 2025, 18:54 ISThomechhattisgarhबस्तर के युवाओं को खास तरीके से गाइड करती हैं डॉ. वर्णिका, ऐसा है सफर
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